जस चाहौ तस सन्तान जन्मावा जाय सकत है

जस चाहौ तस सन्तान जन्मावा जाय सकत है

                           –  अयोध्या प्रसाद श्रीवास्तव

          बुद्धिमान औ तमाम धरम करम मइहन लाग आदमी से भरी ई दुनिया मैहन देखा जात है कि चौतर्फी लूट खसोट मची है, लडाई झगडा, गोला, बारुद, मिसाइल औ बम तक गिरत है ,  सबकोई  सबकै दुस्मन है कोई कैहाँ कोई पर भरोसा नाय रहिगा है, औ दुनिया नरक से बेभत्तर होत जात है । ऐसै रही तौ ई दुनिया केर कब नास होइ जाय कुछ कहा नाय जाय सकत है । बुद्धिमानन केर दुनिया अतनी भयानक काहे है भला ? इकै सोंच तौ बहुतन का है जरूर, लकिन जरि पकरि के दवाई करैक सोंच नाइँ बन पावत है ।

       पहिल बात तौ ई जानैक परा कि मनई के देहीं के भितरी बहिरी सब अंग से लैकै ई दुनियम जौन कुछ देखात है, सब एक दोसरे  कैहाँ कुछ न कुछ देतै  हैं , औ दोसरे से कुछ पायके तब जिन्दा रहत हैं, औ बाढत मोटात, फरत फूलत हैं । लकिन जौ कोई अपने तिरकै चीज दोसरे कैहाँ नदेय तौ  ऊ जौन अउरे से पावत् रहै, वहौ नपाई, वहौ रुकि जाई, औ देन लेन ठप्प होतैखन सबकै नास होइ जाई ।  ई मारे सब एक दोसरे कैहाँ देय वाली चीज खुलिकै देयँ, बेइमानी न करैं , औ ई बात हर घरी मन बुद्धि मैहाँ आवत रहै, औ बनी रहै , बस अतनै काम होइ जाय तौ सब ठीक होइ जाय ।

        वैसै तौ ई धर्ती पर मनई  बुद्धिमान औ तर्कसील परानी है, आदमी चाहै तौ ई धर्ती पर सरग या नरक बनाय सकत है, काहे से वही के तीर बुद्धि औ काम करैक लायक हाथौ पाँव है ।  जौ मनई केर बुद्धि बडिहा बडिहा बात सोचै तौ हाथ पाँव तौ नीक काम करबै करिहैं औ यहै धरती तब सरग  होइ जाई ।   तौ मुख्य समस्या ई है कि मनई केर बुद्धि सब अवस्था मइहन नीक कसकै सोंचै, औ संतुलित कसकै बनी रहै ?  ई संतुलन तब होइ पाई जब मनई के बुद्धि मइहा इकै बिया परा होई । औ बिया परै केर तरीका बहुत कठिन नाइ है ।

         वैसै तौ ई कहा जात है कि मनई जिन्दगी भर कुछ न कुछ सिखा करत है , ई बात गलत तौ नाई है, लकिन ऋषि मुनि हजारन साल  पहिले ई पता लगाइन रहैं कि महतारी के पेटेम जब गरभ दुइ  महिना केर होय लागत है  तबहिन से  बच्चा सुनै गुनै लागत है ।  यही मारे प्राचीन जीवन पद्धति मैहाँ सोरह संसकार बने हैं, जीमा गर्भाधान तौ गरभ से पहिले औ पुन्सवन औ सीमान्तोनयन तौ गरभ के समय मैहाँ कीन जात है ।

          महाभारत मइहन एक प्रसंग है कि अभिमन्यु जब सुभद्रा के गर्भ मैहन रहै तब अर्जुन चक्रव्यूह तूरैक तरीका सुभद्रा कैहन सुनाइन औ अभिमन्यु ऊ तरीका गरभैम सिखिस रहै । औ जब लडैक परा तब वहै नीति नियम से लडिकै देखइबौ किहिस । सीता लव कुश का , शकुन्तला भरत का , भुवनेश्वरी देबी विवेकानन्द का, मारिया बोनापार्ट नेपोलियनका, औ ओलिम्पियाज सिकन्दर महान का  अपने गर्भ मैहन प्रशिक्षित किहिन रहैं  ।  तमाम महतारिन केर प्रमाणित कहानिन से इतिहास भरा है ।

            कुछ समय पहिले तक बहुत मनई कहत रहैं कि ई तौ मनगढन्त गप्प होय । लकिन बिग्यानिक लोग जब ई देखिन कि प्राचीन चलन मा ऋषि लोग गर्भाधान  पुंसवन औ सीमान्तोनयन करैक कहिन हैं औ कहत हैं कि  पत्नी के उर्वर (fertilization) के समय गर्भाधान यज्ञ कइकै मर्द केर शुक्राणु (Sperm )  औ मेहारु केर अंडाणु ( Ova ) का उपचारित (Treat ) करै के खातिर , विशेष विचार बनायके सहवास करैक चाही । औ बच्चा गर्भ मैहा आय जाय, औ तीन महिना केर होइ जाय तब, जौ भ्रूण अवचेतन मन (Sub conscious mind) मइहन पूर्व जन्म केर कोई गलत संसकार लैकै आवा होय तौ उका सकारात्मकता के लंग घुमाय क,े औ सन्तान गढै के खातिर गर्भ के प्रशिक्षण केर पुन्सवन औ सीमान्तोनयन करावैक चाही । वहै वेद वचन मानि  के  आजौ बहुत जने  कुछ न कुछ संस्कार करावत हैं । तौ बिग्यानिक सोंचिन कि ई लोग जौन कहत हैं  औ करत हैं , इमा सच्चाई का है < इकै जांच करैक परा ।

          तब अनुसन्धानकर्ता लोग कुछ गर्भवती मेहरुवन कैहाँ खुब बडिहा सुन्दर जघा पर राखिके उनका खुब खुश किहिन, हँसाइन, गवाइन् औ वहे समय मइहन उनके पेट केर अल्ट्रा साउण्ड किहिन तब पेटे केर बच्चा खूब खुश औ हंसत लोटत देखान । लकिन जब उइ मेहरुवन कैहाँ झगडा बवाल बट्टा  के जघा पर औ कौनौ दुखवाले माहौल मैहाँ राखिन् तब अल्ट्रासाउण्ड भा तौ पेटेक बच्चा  बडा दुखी औ हैरान देखाई परा । वैसै तौ पारसी, इस्लाम औ क्रिश्चियनौ समाज अपने अपने चलन से  ओम्ब सेरेमनी करत है लकिन उमा खाली भौतिकता केर भाव रहत है, लकिन ऋषि परम्परा मैहन भावनात्मक, मानसिक औ अध्यात्मिक भाव औ प्रभाव देखिके बिग्यानीलोग प्राचीन विद्या के बिग्यानिकता से चकित होइगे ।

          तब  तौ  विग्यानौ यू  बात साबित कै दिहिस कि गरभ केर पूजा कौनौ टिटकर्मा ना होय , ई तौ सन्तान केरे दिमाक मैहाँ बिया बोवै केर तरीका होय । गरभ के बच्चा केर दिमाक पहिलेन महिना से बनै लागत है औ तीन महिना से ऊ अपने महतारी के माध्यम से  सुनत समझत है, ४ से ५ महिनम गर्भस्थ शिशु केर दिमाक ८०Ü विकसित होइ जात है, पचये महिना से शिशु महतारी, बाप, दादा, दादी, औ परिवार के मनइन केर बोल चीन्है लागत है, प्यार, गारी, गुस्सा केर भाव समझि के आपन प्रतिक्रिया तक देय लागत है, जौ जादा भाषा सिखावैक होय तौ ई बहुत बढिया समय होय । औ उके चौमंडल जस माहौल राहत है, उके महतारी पर जस प्रभाव औ व्यवहार होत है बच्चा वहै सिखिकै, वैसै बनिकै जलमत  है । गर्भ से लइकै तीन वर्ष तक के बच्चा का जस आहार खवावा जाई, उके जीवन मइहन स्वास्थ्य औ रोग व्याधि केर बिया हिंयै से परत है ।

           शास्त्र कहत है कि सुकदेव मुनि गेरह बर्स महतारी के पेटम रहैं औ पैदा होतै खन ज्ञान केर बात बताय के तपस्या करै जंगल चले गए रहैं ।  इकै मतलब साफ है कि उनका बनावैम महतारी बाप  यही मेर गेरह बर्स मेहनेत किहिन रहे होइहैं । माने एक बर्स पेटेम औ दस बर्स घरे अनुशासन सिखिकै जंगल गए रहंै, जिका सजावटी भाषा मइहन गेरह वर्स पेटेम रहैक लिखा पढा गवा होई । अब तौ पच्छिमहा बिग्यानिकौ ई बात मान लिहिन हैं औ  कहै लागे हैं कि एक सन्तान के गरभ केर नौ महिना, औ लालन पालन मैहन पांच वर्स, औ खराब रास्ता  पर चलैक रोकैक खातिर डाँट, डपट डेरुवावैक पांच वर्स, सब मिलायके गेरह बर्स  जरूर चौकसी करैक चाही तब जायके सन्तान बडिहा बनय केर आस होइ सकत है ।

         मतलब यू है कि गरभ मैहाँ बच्चा पर जस असर होई, वहै  आगे करमन केर बिया होय, औ आगे चलिकै वहै बाढी । गरभ केर जौ बडिहा  हिफाजत कै मिलै तौ  बच्चा बडिहा  मन बुद्धि केर होई, औ जौ खराब माहौल मैहाँ महतारी कैहाँ रहैक परा तौ, तौ सन्तान केर मन बुद्धि वतनी बडिहा होयक आसा न करै । ई बात अब बिलकुल साबित होइ गै है । इकै मतलब ई है कि जिका जस सन्तान चाही, ऊ तस गढि सकत है । संतान कैहन संस्कारवान बनाए से अपने भावी पीढी केर भलाई औ ई दुनिया मैहन शान्ति सुरक्षा, सुव्यवस्था करै केर बहुत बडिहा सहज उपाय है ।

          शान्ति, सुरक्षा शिक्षा, स्वास्थ्य , औ उन्नति, प्रगति के खातिर आज सरकार, औ समाज के ओर से जतना लगानी औ प्रयत्न होत है ई खर्च, मेहनत औ चिन्ता बहुत हद तक घटि जाई । लकिन दुनिया ब्यापारीकरण औ बजारवाद के चपेटा मइहन परे के नाते से ई मेर केर नीक सोंच औ निस्वार्थ भाव से लोककल्याण केर काम मैहन बहुत बडी बाधा परत है । बुद्धिमान, विश्व केर शुभचिन्तक  औ कर्मयोगी लोगन कइहन ई बात पर ध्यान देब जरुरी है ।  औ शासन कइहन  ई सामाजिक रोग केर जरि पकरि के दवाई करैक सोंच बनावैक चाही ।

        समाज औ राज्य औ दुनिया के सुधार मइहन लागे तमाम बडे बडे अंतरराष्ट्र्यि संगठन जौ मन से चाहि लेंय कि दुनिया से अन्याय, अत्याचार, हिंसा, हत्या, लूट, बलात्कार, बमबारी, युद्ध  कइहन जरि से मिटाय के दुनिया का सुन्दर औ सुखदाई बनावैक है, तौ विश्वस्तरीय योजना बनाय के गर्भाधान अवस्था से कमसे कम गेरह वर्स तक मेहरुवन कइहन वही मेर के माहौल केर नारी निकेतन मइहन राखैक चाही ।  उनका बडिहा  खाएक औ  तालीम देव , उनका   नीक चीज देखाव , बौद्धिक बिकास, देहिक बिकास के कामेम लगाव ।  ज्ञानी सन्तान चाही तौ ग्यान केर जगह औ सत्संग मैहा राखौ, जोधा चाहौ तौ हथियार सिखाव,  जस संतान चाहौ वही मेर के माहौल मैहा राखौ । समाज मैहन ई व्यवस्था बन जाय तौ थोरे दिन मा ई दुनिया सुन्दर औ सुखदाई बनत चली जाई ।

           ई सब काम जबतक  सांगठनिक  औ संस्थागत  हिसाब से नाय होत है तबतक छोटे स्तर पर ई काम होइ सकत है । स्थानीय सरकार  औ समाज सबकै  सहजोग से स्कूलन मैहाँ  खाली समय निकारि के गरभवती मेहरुन केर  पढाई औ तालीम सरकार अनिवार्य कै देय । समयसारिणी  औ बिसय बनै । मातृ सिच्छा औ बाल सिच्छा एकडल कै देय  । वहे मेर प्रशिक्षक राखे जायँ ।

           ई व्यवस्था से जतनी सन्तान पैदा होइहै, उइ तन्दुरुस्त, विवेकी औ  सुरच्छित रहिहै, इससे तौ दुनिया  भरेम सान्ति सुरच्छा औ बडिहा व्यवस्था बनि जाई ।  मनई मनई मेर होइ जाई , बुद्धि बडिहा काम मैहा लागै लागी । एक दोसरे से माया मोहब्बत बाढी, दया , सील , सभ्यता बनी । सन्तान नीक  होई तौ संसार नीक होइ जाई ।

                  – लेखक पूर्ब प्रशासनिक अधिकारी , प्राध्यापक औ वकील होंय _