सागर की चाह

                      
                                        

तुम अम्बर में छाई बदली , मैं प्यासा समुद्र भू तल पर ।
बरसो देबी प्यार उडेलो, मर ना जाऊँ तडफ तडफ कर ।।
और ठिकाना तुम मत देखो, तुम्हे समाना मुझ में ही है ।
गिरि या कानन कहीं भी बरसो, तुमको आना मुझ में ही है ।।
धन्य धन्य है योवन तेरा, सुन्दरता क्या न्यारी है ।
हवा लगे तो कली यह चटके, तू सुकुमारी प्यारी है ।।
तेरी सलोनी सूरत प्यारी, ये हिरनी जैसी आँखें ।
चलो मटक कर गिरती बिजली, रुकती जाएँ साँसें ।।
इन्द्रधनुष की चुनरी तेरी, गिरि सुमेरु की है कजली ।
सरिता बहती प्यार से तेरी , तू अद्भुत तरुणी बदली ।।
तू अम्बर में छाई बदली………………………………………………….
इति
जनवरी २०, २०२२